कोमलप्रीत कौर के गरम गरम किस्से
भाग ६. कॉलेज़ के गबरू
लेखिका : कोमलप्रीत कौर
भाग-५ (चार फौजी और चूत का मैदान) से आगे....
यह बात तब की है जब मेरी सासु जी जालंधर के एक अस्पताल में दाखिल थी और मेरे ससुर जी भी रात को उनके पास ही रहते थे। मैं सुबह घर से खाना वगैरह लेकर बस में जाती थी। वैसे तो मैं ड्राइविंग जानती थी लेकिन अस्पताल में और उसके आसपास पार्किंग की बहुत ही दिक्कत थी। एक दिन मैं सुबह जब बस में चढ़ी तो बस में बहुत भीड़ थी, जिनमें ज्यादा स्कूल और कॉलेज के लड़के थे।
उस दिन मैंने गहरे गले वाला सफ़ेद और गुलाबी रंग का पटियाला सलवार कमीज़ पहन रखा था और हमेशा की तरह पैरों में सफ़ेद रंग के ही काफी ऊँची ऐड़ी के सैंडल पहने हुए थे। जहाँ पर मैं खड़ी थी वहां पर मेरे आगे एक बूढ़ी औरत और मेरे पीछे एक लड़का था। कुछ देर बाद उस लड़के ने अपना लण्ड मेरी गाँड से लगा लिया। बस में इतनी भीड़ थी कि ऐसा होना आम था और किसी को पता भी नहीं चल सकता था। यह तो मुझे और उस लड़के को ही पता था।
मेरी तरफ से कोई विरोध ना देख कर लड़के ने अपना लण्ड मेरी गाण्ड पर रगड़ा। मेरे बदन में एक करंट सा दौड़ गया। मुझे लण्ड के स्पर्श से बहुत मजा आया! और आता भी क्यों ना? लण्ड होता ही मजे के लिए है.. खासकर मेरे लिए...। लड़के का लण्ड सख्त हो चुका था और बेकाबू भी होता जा रहा था क्योंकि अब उसकी छलांगे मेरी गाण्ड महसूस कर रही थी। उस दिन मैंने पैंटी भी नहीं पहनी थी और कॉटन की पटियाला सलवार के नीछे मेरी गाँड बिल्कुल नंगी थी। इसके अलावा ऊँची ऐड़ी के सैंडल की वजह से मेरी बड़ी गाँड और भी ज्यादा पीछे की ओर उभरी हुई थी। जब भी बस में कहीं धक्का लगता तो मैं भी उसके लण्ड पर दबाव डाल देती। लेखिका : कोमलप्रीत कौर
हम दोनों लण्ड और गाण्ड की रगड़ाई के मजे ले रहे थे। अब बस जालंधर पहुँच चुकी थी और सब बस से उतर रहे थे, मुझे भी उतरना था और उस लड़के को भी। बस से उतरते ही लड़का पता नहीं कहाँ चला गया। मेरी चूत मेरा चुदने का मन कर रहा था, मगर वो लड़का तो अब कॉलेज चला गया होगा, यह सोच कर मैं उदास हो गई।
अब मुझे अस्पताल जाना था। मैं बस स्टैंड से बाहर आ गई और ऑटो में बैठने ही वाली थी कि वही लड़का बाईक लेकर मेरे पास आकर खड़ा हो गया। मैं उसे देख कर हैरान हो गयी। वो बोला- भाभी जी आओ, मैं आपको छोड़ देता हूँ।
पहले तो मैंने मना कर दिया, मगर फिर उसने कहा- आप जहाँ कहोगी मैं वहीं छोड़ दूँगा!
वैसे भी लड़का इतना सैक्सी था कि उसको मना करना मुश्किल था। तो मैं उसकी बाईक की सीट पर उसके पीछे बैठ गई। उसकी बाईक में पैर रखने के लिये सिर्फ एक छोटा सा खूँटा था तो मैंने उस खूँटे पर अपना एक सैंडल टिका लिया और उस टाँग पर अपनी दूसरी टाँग चढ़ा कर बैठी थी और सहारे के लिये मैंने उसके कंधे पर हाथ रख लिया। सीट की ढलान की वजह से मैं उससे सटी हुई थी और जब उसने बाइक की स्पीड बढ़ा दी तो मुझे सहरे के लिये उसकी कमर में अपनी दोनों बाँहें डालने पड़ीं। बीच-बीच में मैं उसकी टाँगों के बीच में भी हाथ फिरा कर उसके सख्त लण्ड का जायज़ा ले लेती थी।
रास्ते में उसने अपना नाम अनिल बताया। मैंने भी अपने बारे में बताया। थोड़ी आगे जाकर उसने कहा- भाभी अगर आप गुस्सा ना करो तो यहीं पास में से मैंने अपने दोस्त से कुछ किताबें लेनी थी...!
मैंने कहा- कोई बात नहीं, ले लो... लेखिका : कोमलप्रीत कौर
फिर आगे जाकर उसने एक बड़े से शानदार घर के आगे बाईक रोकी। गेट खुला था तो वो बाईक और मुझे भी अंदर ले गया। उसका दोस्त सामने ही खड़ा था। वो दोनों मुझसे थोड़ी दूर खड़े होकर कुछ बातें करने लगे। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मुझे चोदने की बातें कर रहे हों। काश यह दोनों लड़के आज मेरी चुदाई कर दें! बस में और फिर बाईक पर अनिल को खुल्लेआम सिगनल तो मैंने दे ही दिया था।
फिर अनिल ने अपने दोस्त से मिलवाया। उसका नाम सुनील था। सुनील ने मुझे अंदर आने को कहा मगर मैंने सोचा कि सुनील के घर वाले क्या सोचेंगे। इसलिए मैंने कहा- नहीं मैं ठीक हूँ! और फिर अनिल को भी जल्दी चलने को कहा।
तो अनिल मुझसे बोला भाभी जी, दो मिनट बैठते हैं, सुनील घर में अकेला ही है।
यह सुनकर तो मैं बहुत खुश हो गई कि यहाँ पर तो बड़े आराम से चुदाई करवाई जा सकती है। मैं उनके साथ अंदर चली गई और सोफे पर बैठ गई। सुनील कोल्ड ड्रिंक लेकर आया और हम कोल्ड ड्रिंक पीते हुए आपस में बातें करने लगे।
अनिल मेरे साथ बैठा था और सुनील मेरे सामने। वो दोनों घुमा फिरा कर बात मेरी सुन्दरता की करते। अनिल ने कहा- भाभी, आप बहुत सुन्दर हो, जब आप बस में आई थी तो मैं आपको देखता ही रह गया था!
मैंने कहा- अच्छा तो इसी लिए मेरे पास आकर खड़े हो गये थे?
अनिल बोला- नहीं भाभी, वो तो बस में काफी भीड़ थी, इस लिए...
फिर मुझे वही पल याद आ गये जो बस में गुजरे थे इसलिए मैं शरमाते हुए चुप रही। लेखिका : कोमलप्रीत कौर
फिर अनिल बोला- भाभी वैसे बस में काफी मजा था... मेरा मतलब इतनी भीड़ थी कि सर्दी का पता ही नहीं चल रहा था!
मैंने शरमाते हुए कहा- हाँ...! वो... वो... तो है... मैं समझ गई थी कि वो क्या कहना चाहता है।
उसने अपना हाथ बढ़ाया और मेरे हाथ पर रख दिया और बोला- भाभी अब काफी सर्दी लग रही है, अब क्या करूँ?
उसका हाथ पड़ते ही मैं शरमा गई और बोली- क क.. क्या... क्या.. कर.... करना.. है... गर्मी चाहिए तो पैग-शैग लगाओ....
अनिल- भाभी, मगर मुझे तो वो ही गर्मी चाहिए जो बस में थी...
मैं शरमाते हुए अपने बाल ठीक करने लगी। मेरा शरमाना उनको सब कुछ करने की इजाजत दे रहा था। अनिल ने मौके को समझा और अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए।
मैंने आँखे बंद कर ली और सोफे पर ही लेट गई। अनिल भी मेरे ऊपर ही लेट गया! अब सारी शर्म-हया ख़त्म हो चुकी थी
अनिल ने मेरे होंठ अपने मुँह में और मेरे चूचे अपने हाथों में पकड़ लिए थे। मेरी आँखें बंद थी। इस वक्त सुनील पता नहीं क्या कर रहा था मगर उसने अभी तक मुझे नहीं छुआ था। लेखिका : कोमलप्रीत कौर
अनिल मेरे होंठों को जोर जोर से चूस रहा था, मैंने हाथ उसकी कमर पर ढीले से छोड़ रखे थे
फिर सुनील मेरी सर की तरफ आ गया और मेरे गोरे-गोरे गालों और मेरे बालों में हाथ घुमाने लगा। मेरी आँखें अब भी बंद थीं।
वो दोनों मुझसे प्यार का भरपूर का मजा ले रहे थे... कभी अनिल मेरे होंठ चूसता तो कभी सुनील।
अनिल ने मेरी पजामी और कमीज उतार दी। फिर सुनील ने ब्रा भी उतार दी... पैंटी तो पहनी ही नहीं हुई थी।
मैं बिलकुल नंगी हो चुकी थी। बस गले में सफ़ेद मोतियों की माला, कलाइयों में चूड़ियाँ और पैरों में ऊँची ऐड़ी के सैंडल। दोनों मुँह खोले मेरी साफ-सुथरी और शेव की हुई चिकनी चूत ताकने लगे। लेखिका : कोमलप्रीत कौर
वासना में मेरी साँसें तेज़ चल रही थीं और आगे बढ़ने से पहले मैंने उनसे कहा क्यों ना शराब एक-एक पैग लगा लें! फिर और भी मज़ा आयेगा! तो दोनों लड़के हैरान हो गये। अनिल बोला- भाभी आप को शराब पीनी है? मैंने मुस्कुराते हुए गर्दन हिला कर हामी भरी तो सुनील बोला शराब! भाभी वो भी इतनी सुबह?
मैं भी थोड़ा गुस्सा होते हुए बोली क्यों! अगर इतनी सुबह मेरे साथ ये सब मज़े कर सकते हो तो शराब में क्या बुरायी है... शराब से मज़ा दुगना हो जायेगा।
अनिल परेशान होते हुए बोला- भाभी हमने तो पहले कभी पी नहीं है...
पीते नहीं पर पिला तो सकते हो! मैंने थोड़ा ज़ोर दिया तो अनिल ने कहा पर इतनी सुबह शराब कहाँ मिलेगी?
सुनील बोला मिल जायेगी! मेरे चाचा जी के कमरे में मिलेगी... मैं ले कर आता हूँ! फिर वो भगता हूआ अंदर गया और बैगपाइपर व्हिस्की की आधी भरी बोतल ले आया और एक काँच का ग्लास आधा भर कर मुझे पकड़ा दिया। मेरी हँसी छूट गयी- ये तो पूरा पटियाला पैग ही बना दिया तुमने...!
सुनील झेंपते हुए बोला- सॉरी भाभी! मैंने कहाँ कभी पैग बनाया है पहले... लाइये मैं कम कर देता हूँ!
रहने दे... अब तूने पटियाला पैग बना ही दिया तो अब पी लुँगी... चीयर्स! मैं मुस्कुराते हुए पैग पीने लगी। किसी को चोदा तो है ना पहले कि वो भी मुझे ही सिखाना पड़ेगा? मैंने पैग पीते हुए बीच में हंसते हुए पूछा!
तो अनिल बोला- क.. क.. की तो नहीं है पर हमें सब पता है!
हाँ भाभी... हमने ब्लू-फिल्मों में सब देखा है और फिर आप भी तो गाइड करेंगी! सुनील भी बोला।
मैं तो बस मज़ाक कर रही थी मगर मन ही मन में खुश हो रही थी कि मुझे दो कुँवारे लण्ड चोदने क मिल रहे थे। पैग खत्म करके मैंने ग्लास एक तरफ रख कर फिर मैं सोफे पर घुटनों के बल बैठ गई और सुनील की पैंट उतार दी.. उसका लौड़ा उसके कच्छे में फ़ूला हुआ था। मैंने झट से उसका लौड़ा निकाला और अपने हाथों में ले लिया और फिर मुँह में डाल कर जोर-जोर से चूसने लगी। मैं सोफे पर ही घोड़ी बन कर उसका लौड़ा चूस रही थी और अनिल मेरे पीछे आकर मेरी चूत चाटने लगा। अनिल जब भी अपनी जीभ मेरी चूत में घुसाता तो मैं मचल उठती और आगे होने से सुनील का लौड़ा मेरे गले तक उतर जाता।
सुनील भी मेरे बालों को पकड़ कर अपना लौड़ा मेरे मुंह में ठूंस रहा था। फिर सुनील का वीर्य निकल गया और मैंने सारा वीर्य चाट लिया। उधर अनिल के चाटने से मैं भी झड़ चुकी थी। इतनी देर में मुझ पर शराब का मस्ती भरा हल्का नशा चढ़ चुका था।
अब अनिल का लौड़ा मुझे शांत करना था। अनिल सोफे पर बैठ गया और मैं अनिल के आगे उसी की तरफ मुंह करके उसके लौड़े पर अपनी चूत टिका कर बैठ गई। उसका लोहे जैसा लौड़ा मेरी चूत में घुस गया। आहहह! मुझे दर्द हुआ मगर मैंने फिर भी उसका पूरा लौड़ा अपनी चूत में घुसा लिया। लेखिका : कोमलप्रीत कौर
मैं ऊपर-नीचे होकर उसके लौड़े से चुदाई करवा रही थी और सुनील मेरे मम्मों को अपने हाथों से मसल रहा था।
अनिल भी नीचे से जोर-जोर से मेरी चूत में अपना लौड़ा घुसेड़ रहा था। इसी दौरान मैं फ़िर झड़ गई और अनिल के ऊपर से उठ गई मगर अनिल अभी नहीं झड़ा था तो उसने मुझे घोड़ी बना लिया और अपना लौड़ा मेरी गाण्ड में ठूंस दिया।
उफ़! यह बहुत मजेदार चुदाई थी!
अनिल ने मेरी गाण्ड में छः-सात ज़ोरदार धक्के लगाये तो मेरी इच्छा दोहरी चुदाई का मज़ा लेने की हुई। इसलिये मैंने अनिल को लिटाया और मैं उसके लौड़े पर बैठ गयी। अब अनिल मेरे नीचे था और मैं अनिल का लौड़ा अपनी गाण्ड में लिए उसके पैरों की ओर मुंह कर के बैठी थी। मैंने इशारा किया तो सुनील मेरे सामने आ कर बैठ गया और अपना लौड़ा मेरी चूत में घुसाने लगा। मैं अनिल पर उलटी लेट गई और सुनील ने मेरे ऊपर आकर अपना लौड़ा मेरी चूत में घुसा दिया। लेखिका : कोमलप्रीत कौर
उफ़! अब तो मुझे बहुत दर्द हो रहा था और मेरा दिल चिल्लाने को कर रहा था मगर थोड़ी ही देर में चुदाई फिर शुरू हो गई। मैं दोनों के बीच चूत और गाण्ड की प्यास एक साथ बुझा रही थी और वो दोनों जोर-जोर से मेरी चुदाई कर रहे थे।
मैं दो बार झड़ चुकी थी फिर अनिल भी झड़ गया और उसके बाद सुनील भी झड़ गया। हम तीनों थक हार कर लेट गये। फिर मैंने अपने कपड़े पहने। हल्का सा नशा अभी भी था मगर मैंने पानी पिया और हस्पताल चली गई।
हस्पताल से निकलने के बाद शाम को और पूरी रात को मैं अकेली ही होती थी इस लिए वो अनिल और सुनील दोनों शाम को मुझे हस्पताल से सुनील के घर ले जाते। सुनील के घर वाले दिल्ली गये हुए थे इसलिये कोई पूरी आज़ादी थी। मेरे साथ वो भी शराब पीने लगे। हम तीनों मिलकर ब्लू-फिल्म देखते, शराब पीते और फिर वो दोनों मिलकर सारी रात मेरी चुदाई करते। सुबह मैं तैयार होकर हस्पताल आ जाती और वो दोनों कॉलेज इसी तरह पाँच दिन चुदाई चलती रही और फिर सासु ठीक होकर घर आ गई तो उन दोनों लड़कों के साथ चुदाई भी बंद हो गई।
!!! क्रमशः !!!
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